जिंदगी ने एक दिन पूछा मुझे बतला जरा ,
जी जो तूने जिंदगी ये जिंदगी कैसी लगी ।
मैं भी क्या कहती जरा इतरा के इतना ही कहा ,
क्या करूं तेरी बुराई जैसी थी अच्छी लगी । ।
*
मिल गई इक दिन ख़ुशी रोका गली के मोड़ पे ,
पूछती थी ये बता मैं कब मिली कितनी मिली ।
ये सोचकर की रूठ न जाये ख़ुशी मैंने कहा ,
खुश हूँ मैं इतने में ही तू जब मिली जितनी मिली ।
*
आशिकी इक दिन गले लगके लगी कहने मुझे ,
दिल्ल्गी में रह गई या की कभी दिल की लगी ।
आँख भर आई मेरी पर सोचकर ये चुप रही ,
क्या दिखाऊं जख्म दिल के क्या कहूँ दिल की लगी ॥
*
रो रही थी जब अकेली दो हाथ आये आँख पर ,
बोली मैं हूँ कौन कह और खिलखिलाके हँस पड़ी ।
सुनके मैं उसकी हँसी पहचान के उससे कहा ,
तू मेरी नटखट सहेली तू है मेरी दोस्ती ।
जी जो तूने जिंदगी ये जिंदगी कैसी लगी ।
मैं भी क्या कहती जरा इतरा के इतना ही कहा ,
क्या करूं तेरी बुराई जैसी थी अच्छी लगी । ।
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मिल गई इक दिन ख़ुशी रोका गली के मोड़ पे ,
पूछती थी ये बता मैं कब मिली कितनी मिली ।
ये सोचकर की रूठ न जाये ख़ुशी मैंने कहा ,
खुश हूँ मैं इतने में ही तू जब मिली जितनी मिली ।
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आशिकी इक दिन गले लगके लगी कहने मुझे ,
दिल्ल्गी में रह गई या की कभी दिल की लगी ।
आँख भर आई मेरी पर सोचकर ये चुप रही ,
क्या दिखाऊं जख्म दिल के क्या कहूँ दिल की लगी ॥
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रो रही थी जब अकेली दो हाथ आये आँख पर ,
बोली मैं हूँ कौन कह और खिलखिलाके हँस पड़ी ।
सुनके मैं उसकी हँसी पहचान के उससे कहा ,
तू मेरी नटखट सहेली तू है मेरी दोस्ती ।
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