Theme of this blog is love and emotions attached . Songs , Gajals , Shayri written on this blog are completely my personal vies and feelings which i put into words. You can find different kind of emotion related to love and passion arranged into words which will touch your heart.
Friday, April 18, 2014
Thursday, April 17, 2014
ऐ नादान दिल तू परेशान क्यूँ है
मैं हैरान हूँ की तू हैरान क्यूँ है ।
ऐ नादान दिल तू परेशान क्यूँ है ।।
है दस्तूर जग का भला भी बुरा भी ,
जो है हाल तेरा वही है मेरा भी ,
तू सब जान के भी यूँ अंजान क्यूँ है ।
ऐ नादान दिल तू परेशान क्यूँ है ।।
तू क्यूँ अपने ऊपर सितम कर रहा है,
जमाने की बातों का गम कर रहा है ,
तू बेचैन इतना मेरी जान क्यूँ है ।
ऐ नादान दिल तू परेशान क्यूँ है ।।
ऐ नादान दिल तू परेशान क्यूँ है ।।
है दस्तूर जग का भला भी बुरा भी ,
जो है हाल तेरा वही है मेरा भी ,
तू सब जान के भी यूँ अंजान क्यूँ है ।
ऐ नादान दिल तू परेशान क्यूँ है ।।
तू क्यूँ अपने ऊपर सितम कर रहा है,
जमाने की बातों का गम कर रहा है ,
तू बेचैन इतना मेरी जान क्यूँ है ।
ऐ नादान दिल तू परेशान क्यूँ है ।।
Wednesday, April 16, 2014
मैं और तूफान
कुछ डूब गए कुछ पार हुए पर मैं मझधार में पड़ा रहा ।
कुछ गए नही कुछ भाग गए पर मैं तूफां में खड़ा रहा ।
इक हाथ मेरे पतवार रही इक हाथ नाव को पकड़ रहा ,
कभी नाव पानी से भरी रही कभी मैं साहस से भरा रहा ।
सागर में उठता भँवर बड़ा मुश्किल नाव का सफर रहा ,
तूफां ने भी जिद ना छोड़ी मैं भी अपने जिद अड़ा रहा ।
ये सफर अभी भी बांकी है ये जंग अभी भी जारी है ,
कभी तूफां मुझसे जीत रहा कभी मैं तूफां को हरा रहा ।
कुछ गए नही कुछ भाग गए पर मैं तूफां में खड़ा रहा ।
इक हाथ मेरे पतवार रही इक हाथ नाव को पकड़ रहा ,
कभी नाव पानी से भरी रही कभी मैं साहस से भरा रहा ।
सागर में उठता भँवर बड़ा मुश्किल नाव का सफर रहा ,
तूफां ने भी जिद ना छोड़ी मैं भी अपने जिद अड़ा रहा ।
ये सफर अभी भी बांकी है ये जंग अभी भी जारी है ,
कभी तूफां मुझसे जीत रहा कभी मैं तूफां को हरा रहा ।
Tuesday, April 15, 2014
प्रिये दोस्तों
मैं अपने इस ब्लॉग का नाम चेंज करने की सोंच रही हूँ ,
क्यूँ की मैंने इसे जब बनाया था तब सोंच थी की इस पर साहित्य से संबन्धित सामग्री पोस्ट करूंगी परन्तु जैसा की आप देख ही रहे हैं इस पर शायरी की भरमार लगी है । आप सब की इस विषय में अगर कुछ राय हो तो अवश्य बताए।
साजिश मुहब्बत की
साजिश है मुहब्बत की मिटाया जा रहा हूँ मैं ।
मैं था इंसान अब आशिक बनाया जा रहा हूँ मैं ।
वो इल्जाम देते हैं मेरे सर पे न जाने क्यूँ ,
बिना ही जुर्म के मुजरिम बनाया जा रहा हूँ मैं ।
मुझे मुझसे जियादा जनता है वो कहो कैसे ,
क्या दिल की किताबों में पढ़ाया जा रहा हूँ मैं ।
गली भी छोड़ दी उसकी शहर भी छोड़ आया हूँ ,
फिर भी हर रोज ख़ाबों में बुलाया जा रहा हूँ मैं ।
वो भी मजबूर है दिल से मैं भी मजबूर हूँ दिल से ,
सताया जा रहा है वो सताया जा रहा हूँ मैं ।
मैं था इंसान अब आशिक बनाया जा रहा हूँ मैं ।
वो इल्जाम देते हैं मेरे सर पे न जाने क्यूँ ,
बिना ही जुर्म के मुजरिम बनाया जा रहा हूँ मैं ।
मुझे मुझसे जियादा जनता है वो कहो कैसे ,
क्या दिल की किताबों में पढ़ाया जा रहा हूँ मैं ।
गली भी छोड़ दी उसकी शहर भी छोड़ आया हूँ ,
फिर भी हर रोज ख़ाबों में बुलाया जा रहा हूँ मैं ।
वो भी मजबूर है दिल से मैं भी मजबूर हूँ दिल से ,
सताया जा रहा है वो सताया जा रहा हूँ मैं ।
Monday, April 14, 2014
तू है मेरी दोस्ती
जिंदगी ने एक दिन पूछा मुझे बतला जरा ,
जी जो तूने जिंदगी ये जिंदगी कैसी लगी ।
मैं भी क्या कहती जरा इतरा के इतना ही कहा ,
क्या करूं तेरी बुराई जैसी थी अच्छी लगी । ।
*
मिल गई इक दिन ख़ुशी रोका गली के मोड़ पे ,
पूछती थी ये बता मैं कब मिली कितनी मिली ।
ये सोचकर की रूठ न जाये ख़ुशी मैंने कहा ,
खुश हूँ मैं इतने में ही तू जब मिली जितनी मिली ।
*
आशिकी इक दिन गले लगके लगी कहने मुझे ,
दिल्ल्गी में रह गई या की कभी दिल की लगी ।
आँख भर आई मेरी पर सोचकर ये चुप रही ,
क्या दिखाऊं जख्म दिल के क्या कहूँ दिल की लगी ॥
*
रो रही थी जब अकेली दो हाथ आये आँख पर ,
बोली मैं हूँ कौन कह और खिलखिलाके हँस पड़ी ।
सुनके मैं उसकी हँसी पहचान के उससे कहा ,
तू मेरी नटखट सहेली तू है मेरी दोस्ती ।
जी जो तूने जिंदगी ये जिंदगी कैसी लगी ।
मैं भी क्या कहती जरा इतरा के इतना ही कहा ,
क्या करूं तेरी बुराई जैसी थी अच्छी लगी । ।
*
मिल गई इक दिन ख़ुशी रोका गली के मोड़ पे ,
पूछती थी ये बता मैं कब मिली कितनी मिली ।
ये सोचकर की रूठ न जाये ख़ुशी मैंने कहा ,
खुश हूँ मैं इतने में ही तू जब मिली जितनी मिली ।
*
आशिकी इक दिन गले लगके लगी कहने मुझे ,
दिल्ल्गी में रह गई या की कभी दिल की लगी ।
आँख भर आई मेरी पर सोचकर ये चुप रही ,
क्या दिखाऊं जख्म दिल के क्या कहूँ दिल की लगी ॥
*
रो रही थी जब अकेली दो हाथ आये आँख पर ,
बोली मैं हूँ कौन कह और खिलखिलाके हँस पड़ी ।
सुनके मैं उसकी हँसी पहचान के उससे कहा ,
तू मेरी नटखट सहेली तू है मेरी दोस्ती ।
मैं दिल के सफर में हूँ
मीलों अभी चलना है मैं दिल के सफर में हूँ ।
वो मेरी नजर में है मैं उसकी नजर में हूँ ।
डर इस बात का नही है की तूफां है जोर का ,
खौफ इस बात से होता है मैं सीसे के घर में हूँ ।
किसको है पता कल मैं कहाँ कल तू कहाँ हो ,
मिलने को कभी आ अभी तेरे शहर में हूँ ।
अच्छी कहाँ लगती है बुजुर्गों की नसीहत ,
सब बेअसर लगता है मैं तेरे असर में हूँ ।
इक तुम हो की मगरूर बने बैठे हो हमसे ,
इक मैं की रात -दिन सदा तेरी फ़िकर में हूँ ।
वो मेरी नजर में है मैं उसकी नजर में हूँ ।
डर इस बात का नही है की तूफां है जोर का ,
खौफ इस बात से होता है मैं सीसे के घर में हूँ ।
किसको है पता कल मैं कहाँ कल तू कहाँ हो ,
मिलने को कभी आ अभी तेरे शहर में हूँ ।
अच्छी कहाँ लगती है बुजुर्गों की नसीहत ,
सब बेअसर लगता है मैं तेरे असर में हूँ ।
इक तुम हो की मगरूर बने बैठे हो हमसे ,
इक मैं की रात -दिन सदा तेरी फ़िकर में हूँ ।
Sunday, April 13, 2014
Saturday, April 12, 2014
Friday, April 11, 2014
प्रिये मित्रों
प्रिये मित्रों , एक छोटी सी इल्तजा है आप सब से,
मैंने हमेशा आप लोगों की पसंद का ख्याल रख कर शायरी की है , जिस प्रकार की शायरी ज्यादा देखि गई ,मैंने उसे आपकी पसंद समझ कर वैसी ही शायरी लिखने की बार - बार कोशिश की। ....... पता नही कितनी कामयाब हुई। …… आज बस यही जानने की जिज्ञासा हुई है की आप को मेरी शायरी कैसी लगती है अथवा आप किस तरह की शायरी पढ़ना पसंद करते हैं । अतः अपने देश और विदेश के सभी पाठक मित्रों से अनुरोध है की मेरे ब्लॉग से जुड़कर (फॉलो माई ब्लॉग ) मुझे अपने भाव से अवगत कराएं । (बाई ई मेल या कॉमेंट ) ।
मैंने हमेशा आप लोगों की पसंद का ख्याल रख कर शायरी की है , जिस प्रकार की शायरी ज्यादा देखि गई ,मैंने उसे आपकी पसंद समझ कर वैसी ही शायरी लिखने की बार - बार कोशिश की। ....... पता नही कितनी कामयाब हुई। …… आज बस यही जानने की जिज्ञासा हुई है की आप को मेरी शायरी कैसी लगती है अथवा आप किस तरह की शायरी पढ़ना पसंद करते हैं । अतः अपने देश और विदेश के सभी पाठक मित्रों से अनुरोध है की मेरे ब्लॉग से जुड़कर (फॉलो माई ब्लॉग ) मुझे अपने भाव से अवगत कराएं । (बाई ई मेल या कॉमेंट ) ।
दोस्त बुलाता नही कोई
इक तू नही शिकवा-गिला करता नही कोई ।
इक तू नही दिल से मिला करता नही कोई ।।
कहता नही सुनता नही कोई भला - बुरा ,
इक तू नही कोई दर्द समझता नही मेरा ।
उलझन ये जमाने की दुनियां के झमेले ,
इक तू नही चुपचाप ही सहते हैं अकेले ।
बेरंग से लगते हैं ये मौसम ये बहारें ,
इक तू नही भाते नही हसीन नजारे ।
कोई रूठता नही है मनाता नही कोई ,
जो तू नही तो दोस्त बुलाता नही कोई ।
इक तू नही दिल से मिला करता नही कोई ।।
कहता नही सुनता नही कोई भला - बुरा ,
इक तू नही कोई दर्द समझता नही मेरा ।
उलझन ये जमाने की दुनियां के झमेले ,
इक तू नही चुपचाप ही सहते हैं अकेले ।
बेरंग से लगते हैं ये मौसम ये बहारें ,
इक तू नही भाते नही हसीन नजारे ।
कोई रूठता नही है मनाता नही कोई ,
जो तू नही तो दोस्त बुलाता नही कोई ।
Thursday, April 10, 2014
Wednesday, April 9, 2014
हादसा ऐसा कभी होता तो नही था
हादसा ऐसा कभी होता तो नही था ।
दिल इस कदर बेचैन था सोता ही नही था ।
इक दिल का खरीदार था कुछ इस कदर चालाक ,
ले लेता था वो दिल दिल देता ही नही था ।
इक याद आ रहा था वो ही दिल को बार - बार ,
जाके भी दूर दिल से वो जाता ही नही था ।
वो मुस्कुरा के देखता मैं मांगती थी दिल ,
दिल मेरा उसके पास से आता ही नही था ।
दिल लेके वो चला गया मैं देखती रही ,
वो मुड़के एक बार देखता भी नही था ।
दिल इस कदर बेचैन था सोता ही नही था ।
इक दिल का खरीदार था कुछ इस कदर चालाक ,
ले लेता था वो दिल दिल देता ही नही था ।
इक याद आ रहा था वो ही दिल को बार - बार ,
जाके भी दूर दिल से वो जाता ही नही था ।
वो मुस्कुरा के देखता मैं मांगती थी दिल ,
दिल मेरा उसके पास से आता ही नही था ।
दिल लेके वो चला गया मैं देखती रही ,
वो मुड़के एक बार देखता भी नही था ।
Tuesday, April 8, 2014
नजर क्यूँ फेर लेते हो
नजर मिलते ही ना जाने नजर क्यूँ फेर लेते हो ।
हवा करते हो जख्मों को दर्द को छेड़ देते हो ।
कभी तुम आजमाना दिल को कितना दर्द होता है ,
कि जब अपने ही अपनों को अकेला छोड़ देते हो ।
भुला बैठे जो सब वादे इरादे तुम मुहब्ब्त के ,
तो क्यूँ छुप - छुप के गैरों से हमारी खैर लेते हो ।
मुहब्ब्त तुम में भी है मुझमे भी है हर शै में बसती है ,
वफ़ा ठुकरा के क्यूँ मेरी खुदा से बैर लेते हो ।
हवा करते हो जख्मों को दर्द को छेड़ देते हो ।
कभी तुम आजमाना दिल को कितना दर्द होता है ,
कि जब अपने ही अपनों को अकेला छोड़ देते हो ।
भुला बैठे जो सब वादे इरादे तुम मुहब्ब्त के ,
तो क्यूँ छुप - छुप के गैरों से हमारी खैर लेते हो ।
मुहब्ब्त तुम में भी है मुझमे भी है हर शै में बसती है ,
वफ़ा ठुकरा के क्यूँ मेरी खुदा से बैर लेते हो ।
Monday, April 7, 2014
रिस्ते भी हैं रंगों जैसे
कुछ रिस्ते ऐसे उलझे थे ,
सुलझाते - सुलझाते टूट गये ।
वो आये हमको समझाने ,
खुद जाते - जाते रूठ गये ।
वो दर्द दबाकर बैठे थे ,
हँस -हँस के सबसे मिलते थे ,
हमने जो हाल जरा पूछा ,
वो हाल सुनाते टूट गये ।
इक माँ बाबूजी जब तक थें ,
भाई - भौजाई अपने थे ,
इक वो न रहे जो दुनियां में ,
सब रिस्ते - नाते टूट गये ।
रिस्ते भी हैं रंगों जैसे ,
कुछ कच्चे -पक्के होते हैं ,
कुछ रंग उमर भर ना निकलें ,
कुछ रंग लगाते छूट गये ।
सुलझाते - सुलझाते टूट गये ।
वो आये हमको समझाने ,
खुद जाते - जाते रूठ गये ।
वो दर्द दबाकर बैठे थे ,
हँस -हँस के सबसे मिलते थे ,
हमने जो हाल जरा पूछा ,
वो हाल सुनाते टूट गये ।
इक माँ बाबूजी जब तक थें ,
भाई - भौजाई अपने थे ,
इक वो न रहे जो दुनियां में ,
सब रिस्ते - नाते टूट गये ।
रिस्ते भी हैं रंगों जैसे ,
कुछ कच्चे -पक्के होते हैं ,
कुछ रंग उमर भर ना निकलें ,
कुछ रंग लगाते छूट गये ।
Sunday, April 6, 2014
Saturday, April 5, 2014
Friday, April 4, 2014
राह प्यार कि
टेढ़े - मेढ़े रस्तों से जब राह प्यार कि मिले न तुमको ,
सीधे - सीधे आ जाना मैं प्रेम गली में रहती हूँ ।
दूर - दूर तक परछाई भी साथ नही जब देती हो ,
मुझको तुम महसूस करो मैं साथ तुम्हारे चलती हूँ ।
रात - रात जब नींद न आये सुबह लगे जब अलसाई ,
मूंद के आँखे मुझे बुलाना मैं खाबों में मिलती हूँ ।
झूठ और मक्कारी से जब थक जाओ तब सच कहना ,
कहीं तुम्हारे दिल में बनके कमीं तो नही खलती हूँ ।
सीधे - सीधे आ जाना मैं प्रेम गली में रहती हूँ ।
दूर - दूर तक परछाई भी साथ नही जब देती हो ,
मुझको तुम महसूस करो मैं साथ तुम्हारे चलती हूँ ।
रात - रात जब नींद न आये सुबह लगे जब अलसाई ,
मूंद के आँखे मुझे बुलाना मैं खाबों में मिलती हूँ ।
झूठ और मक्कारी से जब थक जाओ तब सच कहना ,
कहीं तुम्हारे दिल में बनके कमीं तो नही खलती हूँ ।
Thursday, April 3, 2014
Wednesday, April 2, 2014
पत्थर से टकराकर पत्थर बन जायेंगे लगता है
पत्थर से टकराकर पत्थर बन जायेंगे लगता है ।
करो कोशिशें मोम न फिर हम बन पायेंगे लगता है ।
चाँद-सितारे ताक-ताक के रात-रात भर जाग-जाग के ,
शायर बने - बने न पागल बन जायेंगे लगता है ।
इधर-उधर कि ताक-झाँक से धूल राह कि फांक-फांक के,
आशिक बने न आवारा तो बन जायेंगे लगता है ।
तेरे चक्कर लगा-लगा के तोहफे तुझको दिला-दिला के ,
बने न शायद पति भिखारी बन जायेंगे लगता है ।
करो कोशिशें मोम न फिर हम बन पायेंगे लगता है ।
चाँद-सितारे ताक-ताक के रात-रात भर जाग-जाग के ,
शायर बने - बने न पागल बन जायेंगे लगता है ।
इधर-उधर कि ताक-झाँक से धूल राह कि फांक-फांक के,
आशिक बने न आवारा तो बन जायेंगे लगता है ।
तेरे चक्कर लगा-लगा के तोहफे तुझको दिला-दिला के ,
बने न शायद पति भिखारी बन जायेंगे लगता है ।
Tuesday, April 1, 2014
अफसाना बन जाता
अच्छा है पन्ना पलट गया
और एक कहानी खत्म हुई ,
ना जाने कितने पन्नों का
ये एक फ़साना बन जाता ।
अच्छा है शमां जली नही
ये रात गुजर गई आँखों में ,
गर शमां जलाई जाती तो
लाखों परवाना बन जाता ।
पहचान यहीं तक अच्छी है
बस दुआ सलाम हो जाती है ,
होता तोहफों का लेन-देन
घर आना - जाना बन जाता ।
कुछ बात हमारे मन में थी
कुछ बात तुम्हारे मन में थी ,
अच्छा है राज ये खुला नही
वरना अफसाना बन जाता । ।
और एक कहानी खत्म हुई ,
ना जाने कितने पन्नों का
ये एक फ़साना बन जाता ।
अच्छा है शमां जली नही
ये रात गुजर गई आँखों में ,
गर शमां जलाई जाती तो
लाखों परवाना बन जाता ।
पहचान यहीं तक अच्छी है
बस दुआ सलाम हो जाती है ,
होता तोहफों का लेन-देन
घर आना - जाना बन जाता ।
कुछ बात हमारे मन में थी
कुछ बात तुम्हारे मन में थी ,
अच्छा है राज ये खुला नही
वरना अफसाना बन जाता । ।
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