टूटते तारों के जैसे टूटते हैं रोज सपने ,
सोंचते हैं हम भी अब ख़ाब बुनना छोड़ दें।
एक ही थी आरजू वो भी नही सुनता खुदा ,
बेकार है फिर बन्दगी सब कहना सुनना छोड़ दें ।
हर हाल में जीना पड़े ये भी कहो कोई बात है ,
इतनी आजादी तो मिले जब चाहे जीना छोड़ दें।
सोंचते हैं हम भी अब ख़ाब बुनना छोड़ दें।
एक ही थी आरजू वो भी नही सुनता खुदा ,
बेकार है फिर बन्दगी सब कहना सुनना छोड़ दें ।
हर हाल में जीना पड़े ये भी कहो कोई बात है ,
इतनी आजादी तो मिले जब चाहे जीना छोड़ दें।
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