रवायत रही है इश्क की जी को जला के जी ,
माना है जहर इश्क पर खुद को पिला के जी ।
अफ़सोस बस इतना है जिन्हें याद करते हैं ,
आये वही कहने की जा मुझको भूला के जी ।
माना है जहर इश्क पर खुद को पिला के जी ।
अफ़सोस बस इतना है जिन्हें याद करते हैं ,
आये वही कहने की जा मुझको भूला के जी ।
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