Thursday, September 12, 2013

शायरी

जितनी सुलझाते हैं उलझन और भी होती है क्यूँ ।
जब भी तन्हा होती है तो बेबसी रोती है क्यूँ ।

रौशनी और चांदनी में बैर है किस बात का ,
जागती है एक जब भी दूसरी सोती है क्यूँ ।

No comments:

Post a Comment