खुशियों का मुझसे हमेशा फासला रक्खा गया ।
दूर मुझसे हसरतों का काफिला रक्खा गया ।
उनसे सच कह दें मगर है फायदा कुछ भी नही ,
अन्धे को क्या, सामने हो आईना रक्खा गया ।
रात सूनी शाम काली जिंदगी अँधेरी हो गई ,
जब बुझाकर ताक पर दिल का दिया रक्खा गया ।
इक तरफ मेरी मुहब्बत इक तरफ सारा जहाँ ,
हाशिये पर इस तरह वादे - वफ़ा रक्खा गया ।
सब समझते हो मगर चाहत समझते ही नही ,
फिर समझने को भला दुनियाँ में क्या रक्खा गया ।।
दूर मुझसे हसरतों का काफिला रक्खा गया ।
उनसे सच कह दें मगर है फायदा कुछ भी नही ,
अन्धे को क्या, सामने हो आईना रक्खा गया ।
रात सूनी शाम काली जिंदगी अँधेरी हो गई ,
जब बुझाकर ताक पर दिल का दिया रक्खा गया ।
इक तरफ मेरी मुहब्बत इक तरफ सारा जहाँ ,
हाशिये पर इस तरह वादे - वफ़ा रक्खा गया ।
सब समझते हो मगर चाहत समझते ही नही ,
फिर समझने को भला दुनियाँ में क्या रक्खा गया ।।
waaaah... bahut umda hai....
ReplyDeletehashiyevalaa she'r .. kya kheni waaaah
shukriya Ashok ji ......... aap jaise shayri ke kdrdanon ki duaa hai sb
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