Theme of this blog is love and emotions attached . Songs , Gajals , Shayri written on this blog are completely my personal vies and feelings which i put into words. You can find different kind of emotion related to love and passion arranged into words which will touch your heart.
Friday, October 24, 2014
Monday, October 20, 2014
Friday, October 17, 2014
मुस्कुराना भूल जाती हूँ
मैं गम में देख उस को मुस्कुराना भूल जाती हूँ ।
उसे जब याद रखती हूँ जमाना भूल जाती हूँ ।
कहीं मैं खो न दूँ उस को मुझे इस बात का डर है ,
यही सब सोंचकर चाहत जताना भूल जाती हूँ ।
ये यादें दर्द अब मुझको जियादा दे नही पातें ,
नया कुछ देखती हूँ तो पुराना भूल जाती हूँ ।
हवाएँ रूठकर मुझसे शिकायत कर के यूँ बोली ,
मैं अब सावन में भी झूला लगाना भूल जाती हूँ ।
यूँ रोटी- दाल में ही अपनी अब मसरूफ रहती हूँ ,
की मैं चिड़ियों को भी दाना खिलाना भूल जाती हूँ ।
ये आँगन में जो तुलसी है हरी थी जब तलक थी माँ ,
मैं अब पौधों को भी पानी पिलाना भूल जाती हूँ ।
न जाने कब से अँधेरा है मेरे दिल के कोने में ,
दिया दिल में जलाना है जलाना भूल जाती हूँ ।
वो रिश्तेदार हैं इतनी सी अब पहचान है उनसे ,
मैं भी उनकी तरह रिश्ता निभाना भूल जाती हूँ । ।
उसे जब याद रखती हूँ जमाना भूल जाती हूँ ।
कहीं मैं खो न दूँ उस को मुझे इस बात का डर है ,
यही सब सोंचकर चाहत जताना भूल जाती हूँ ।
ये यादें दर्द अब मुझको जियादा दे नही पातें ,
नया कुछ देखती हूँ तो पुराना भूल जाती हूँ ।
हवाएँ रूठकर मुझसे शिकायत कर के यूँ बोली ,
मैं अब सावन में भी झूला लगाना भूल जाती हूँ ।
यूँ रोटी- दाल में ही अपनी अब मसरूफ रहती हूँ ,
की मैं चिड़ियों को भी दाना खिलाना भूल जाती हूँ ।
ये आँगन में जो तुलसी है हरी थी जब तलक थी माँ ,
मैं अब पौधों को भी पानी पिलाना भूल जाती हूँ ।
न जाने कब से अँधेरा है मेरे दिल के कोने में ,
दिया दिल में जलाना है जलाना भूल जाती हूँ ।
वो रिश्तेदार हैं इतनी सी अब पहचान है उनसे ,
मैं भी उनकी तरह रिश्ता निभाना भूल जाती हूँ । ।
Tuesday, October 14, 2014
पागल है दिवाना है दिल
पागल है दिवाना है दिल तेरी बातें करता है ,
कैसे मैं समझाऊं इस को ये तेरी जिद करता है ।
उसका जाकर हो जाऊँगा मुझ से आकर कहता है ये ,
कैसी बातें करता है ये ,सोंच के मन अब डरता है ।
इतनी मुहब्बत पाल रहा है ना जाने क्या होगा आगे ,
खींच रही मैं डोर इधर को और उधर ये बढ़ता है ।
तुझपर प्यार बहुत आता है तेरा होकर रहता है ये ,
कुछ बोलूं तो मैं दुश्मन हूँ मुझसे आकर लड़ता है ।
सुबहो - शाम तेरी बातों में खोया रहता है पागल ये ,
नाम तुम्हारा ले - ले कर ये हर पल आहें भरता है ।
लाग लगाके ओ हरजाई सुनता ना है दिल की दुहाई ,
देख मेरी क्या हालत हो गई ऐसा भी कोई करता है ।।
कैसे मैं समझाऊं इस को ये तेरी जिद करता है ।
उसका जाकर हो जाऊँगा मुझ से आकर कहता है ये ,
कैसी बातें करता है ये ,सोंच के मन अब डरता है ।
इतनी मुहब्बत पाल रहा है ना जाने क्या होगा आगे ,
खींच रही मैं डोर इधर को और उधर ये बढ़ता है ।
तुझपर प्यार बहुत आता है तेरा होकर रहता है ये ,
कुछ बोलूं तो मैं दुश्मन हूँ मुझसे आकर लड़ता है ।
सुबहो - शाम तेरी बातों में खोया रहता है पागल ये ,
नाम तुम्हारा ले - ले कर ये हर पल आहें भरता है ।
लाग लगाके ओ हरजाई सुनता ना है दिल की दुहाई ,
देख मेरी क्या हालत हो गई ऐसा भी कोई करता है ।।
Monday, October 13, 2014
my poem published in today's news paper....वक्त बेवफा भी है
जिससे हुआ है प्यार ,उससे गिला भी है ।
मंजिल पे खड़ा हैं , जमात हैं हजारों की ,
वही रास्ते में था तो , तन्हां चला भी है ।
चिंगारी ने जब चाहा है ,जला डाला आशियाँ ,
पर और जले उससे पहले , खुद जला भी है ।
हैं निम - करेले में , कडवाहटें जितनी ,
नजरें बदल के देखलो , उतना भला भी है ।
है राज अँधेरे औ , उजाले का बस इतना ,
जिसका उदय हुआ है , इकदिन ढला भी है ।
इंसान ने इंसान को ,धोखा दिया तो क्या ,
इंसान ने कई बार तो ,खुद को छला भी है ।
इतना न कर गुमान , वक्त किसका हुआ है ,
है ये जितना वफादार उतना बेवफा भी है । |
Saturday, October 11, 2014
आज रात जब चंदा आये
आज रात जब चंदा आये मेरी बातें मत करना ,
वरना सारी रात कटेगी फिर दिल को समझाने में ।
तुम पूछोगे मैं कैसी हूँ और वो ताने मारेगा ,
फिर तुम आहत दिल कर लोगे उसको सच बतलाने में ।
वो पूछेगा तुम कैसे हो मेरे बिन कैसे जीते हो ,
फिर तुम को परेशानी होगी अपने जख्म दिखाने में ।
तुम रोओगे उसके आगे और वो मुझ से बोलेगा ,
मुश्किल होगी फिर मुझको भी अपना जी बहलाने में ।
ऐसा हो तुम आज रात को चाँद से मिलने ना जाओ ,
या ऐसा हो देरी कर दे चाँद रात में आने में ।
वरना सारी रात कटेगी फिर दिल को समझाने में ।
तुम पूछोगे मैं कैसी हूँ और वो ताने मारेगा ,
फिर तुम आहत दिल कर लोगे उसको सच बतलाने में ।
वो पूछेगा तुम कैसे हो मेरे बिन कैसे जीते हो ,
फिर तुम को परेशानी होगी अपने जख्म दिखाने में ।
तुम रोओगे उसके आगे और वो मुझ से बोलेगा ,
मुश्किल होगी फिर मुझको भी अपना जी बहलाने में ।
ऐसा हो तुम आज रात को चाँद से मिलने ना जाओ ,
या ऐसा हो देरी कर दे चाँद रात में आने में ।
Friday, October 10, 2014
ये दिल बिमार कौन करे
वफ़ा की उनसे शिकायत ही यार कौन करे ।
सनम है बेवफा जो उनसे प्यार कौन करे ।
वो मुझ से कहता है की मुझपे ऐतवार करो ,
तू ही बता ये खता बार - बार कौन करे ।
चला गया जो वो सरे - राह हमसे कतरा कर ,
वो आज आ भी गया दिल निसार कौन करे ।
वो आजमा के मुझे बार - बार हार गया ,
वो सोंचता था यही अपनी हार कौन करे ।
ये इश्क आग है जलना नही मुझे हमदम ,
जला - जला के भला दिल पे वार कौन करे ।
हमें न आ रही है रास चाहतों की अदा ,
अजीब रोग है ये दिल बिमार कौन करे । ।
सनम है बेवफा जो उनसे प्यार कौन करे ।
वो मुझ से कहता है की मुझपे ऐतवार करो ,
तू ही बता ये खता बार - बार कौन करे ।
चला गया जो वो सरे - राह हमसे कतरा कर ,
वो आज आ भी गया दिल निसार कौन करे ।
वो आजमा के मुझे बार - बार हार गया ,
वो सोंचता था यही अपनी हार कौन करे ।
ये इश्क आग है जलना नही मुझे हमदम ,
जला - जला के भला दिल पे वार कौन करे ।
हमें न आ रही है रास चाहतों की अदा ,
अजीब रोग है ये दिल बिमार कौन करे । ।
जिंदगी इक कसौटी है
जिंदगी आजमाईश की इक ऐसी कसौटी है ,
न जिसमे हार होती है न जिसमें जीत होती है ।
हो कितना बड़ा कोई या हो कितना कोई छोटा ,
जिंदगी एक दिन सब से ही रिश्ता तोड़ लेती है ।
कभी बे- बात भी सर पे बिठा लेती है लोगों को ,
जरा सी बात पे लोगों से मुँह भी मोड़ लेती है ।
तजुर्बे की जगह है ये , उमरभर सीख देती है ,
संभल जाओ तो अच्छा है नही तो तोड़ देती है ।
जिंदगी इक पहेली है की जो सुलझी नही अब तक ,
सवालों के सुलझते ही सवाल इक छोड़ देती है ।।
न जिसमे हार होती है न जिसमें जीत होती है ।
हो कितना बड़ा कोई या हो कितना कोई छोटा ,
जिंदगी एक दिन सब से ही रिश्ता तोड़ लेती है ।
कभी बे- बात भी सर पे बिठा लेती है लोगों को ,
जरा सी बात पे लोगों से मुँह भी मोड़ लेती है ।
तजुर्बे की जगह है ये , उमरभर सीख देती है ,
संभल जाओ तो अच्छा है नही तो तोड़ देती है ।
जिंदगी इक पहेली है की जो सुलझी नही अब तक ,
सवालों के सुलझते ही सवाल इक छोड़ देती है ।।
Thursday, October 9, 2014
Tuesday, October 7, 2014
Monday, October 6, 2014
Thursday, October 2, 2014
my poem published in today's news paper................ दामिनी
बोली जीने में क्या रखा ,
मैंने दिन इतना बुरा देखा ,
और जग से रिश्ता तोड़ गई ।
आखिर में वो जग छोड़ गई ।
मैंने दिन इतना बुरा देखा ,
और जग से रिश्ता तोड़ गई ।
आखिर में वो जग छोड़ गई ।
Wednesday, October 1, 2014
खुशियों का मुझसे हमेशा फासला रक्खा गया
खुशियों का मुझसे हमेशा फासला रक्खा गया ।
दूर मुझसे हसरतों का काफिला रक्खा गया ।
उनसे सच कह दें मगर है फायदा कुछ भी नही ,
अन्धे को क्या, सामने हो आईना रक्खा गया ।
रात सूनी शाम काली जिंदगी अँधेरी हो गई ,
जब बुझाकर ताक पर दिल का दिया रक्खा गया ।
इक तरफ मेरी मुहब्बत इक तरफ सारा जहाँ ,
हाशिये पर इस तरह वादे - वफ़ा रक्खा गया ।
सब समझते हो मगर चाहत समझते ही नही ,
फिर समझने को भला दुनियाँ में क्या रक्खा गया ।।
दूर मुझसे हसरतों का काफिला रक्खा गया ।
उनसे सच कह दें मगर है फायदा कुछ भी नही ,
अन्धे को क्या, सामने हो आईना रक्खा गया ।
रात सूनी शाम काली जिंदगी अँधेरी हो गई ,
जब बुझाकर ताक पर दिल का दिया रक्खा गया ।
इक तरफ मेरी मुहब्बत इक तरफ सारा जहाँ ,
हाशिये पर इस तरह वादे - वफ़ा रक्खा गया ।
सब समझते हो मगर चाहत समझते ही नही ,
फिर समझने को भला दुनियाँ में क्या रक्खा गया ।।
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