जब जी करता रो लेती थी ,
गम भी हँसके ढो लेती थी ,
बच्ची थी तब अच्छी थी माँ ,
गोदी में ही सो लेती थी ।
अब ना मैं जिद कर पाती हूँ ,
ना अपने पे अड़ पाती हूँ ,
इक वो दिन था जब मैं तुझसे ,
जो मरजी हो वो लेती थी ।
एक तू ही दौलत थी मेरी ,
तेरी हो कर थी मैं पूरी ,
गम भी मुझको कम लगते थे ,
जब मैं तेरी हो लेती थी ।
तेरी ममता खो कर रोई ,
रहती हूँ मैं खोई - खोई ,
तेरे चरणों में माँ आ के
पापों को भी धो लेती थी ।
तेरे दामन में छिप जाती ,
गर मैं फिर बच्ची बन पाती ,
माँ बनकर मैंने ये जाना ,
माँ तू कितने गम ढोती थी ।
गम भी हँसके ढो लेती थी ,
बच्ची थी तब अच्छी थी माँ ,
गोदी में ही सो लेती थी ।
अब ना मैं जिद कर पाती हूँ ,
ना अपने पे अड़ पाती हूँ ,
इक वो दिन था जब मैं तुझसे ,
जो मरजी हो वो लेती थी ।
एक तू ही दौलत थी मेरी ,
तेरी हो कर थी मैं पूरी ,
गम भी मुझको कम लगते थे ,
जब मैं तेरी हो लेती थी ।
तेरी ममता खो कर रोई ,
रहती हूँ मैं खोई - खोई ,
तेरे चरणों में माँ आ के
पापों को भी धो लेती थी ।
तेरे दामन में छिप जाती ,
गर मैं फिर बच्ची बन पाती ,
माँ बनकर मैंने ये जाना ,
माँ तू कितने गम ढोती थी ।
मन को चूने वाली रचना है ... माँ से जुसे बच्चे के रिश्ते को बाखूबी शब्दों में उतारा है ..
ReplyDeleteजी सर बहुत आभार
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