Wednesday, September 10, 2014

बच्ची थी तब अच्छी थी माँ

जब जी करता रो लेती थी  ,
गम भी हँसके ढो लेती थी ,
बच्ची थी तब अच्छी थी माँ ,
गोदी में ही सो लेती थी ।

अब ना मैं जिद कर पाती  हूँ ,
ना अपने पे अड़ पाती  हूँ ,
इक वो दिन था जब मैं तुझसे ,
जो मरजी हो वो लेती थी  ।

एक तू ही दौलत थी मेरी  ,
तेरी हो कर थी मैं पूरी ,
गम भी मुझको कम लगते थे ,
जब मैं तेरी हो लेती थी  ।

तेरी ममता खो कर रोई ,
रहती हूँ मैं खोई - खोई  ,
तेरे चरणों में माँ  आ  के
पापों को भी धो लेती थी ।

तेरे दामन में छिप जाती ,
गर मैं फिर बच्ची बन पाती ,
माँ बनकर मैंने ये जाना ,
माँ तू कितने गम ढोती थी ।




2 comments:

  1. मन को चूने वाली रचना है ... माँ से जुसे बच्चे के रिश्ते को बाखूबी शब्दों में उतारा है ..

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