Sunday, March 30, 2014

माँ कि दुआ

तोड़ी न जा सकी कभी काटी न जा सकी ।
बँट गये मकान माँ बाँटी न जा सकी ।

तौला गया अनाज और जोड़ा गया हिसाब ,
कीमत मगर बुजुर्ग कि आँकी न जा सकी ।

बेटे - बहु आपस कि लड़ाई में रह गयें ,
सब ले गए इक बापू कि लाठी न जा सकी ।

जो सबसे कीमती था वही धन नही बँटा ,
सब कुछ चला गया दुआ माँ कि न जा सकी ।

Thursday, March 27, 2014

my hindi song

वो प्यार को खेल समझती थी

जिस ओर कदम हम रखते थे उस ओर मुहब्ब्त चलती थी ,
मेरे साथ मुहब्ब्त चलती थी इस बात से दुनियाँ जलती थी ।

मेरे सपनों में वो ही थी उसके सपनों में और कोई ,
वो मेरी गली से होकर के किसी और से जाकर मिलती थी ।

जी भर न कली को देख सके पतझड़ का मौसम आ पहुँचा ,
इस कदर बेसबर थी मौसम इक पल में रंग बदलती थी ।

मुझको खुशबू कि आदत थी मैं भंवरे से कुछ कम न था ,
पर एक कली वो ऐसी थी जो भंवरे रोज पकड़ती थी ।

उस कली में लाखों खूबी थी हर एक तरीका सुंदर था  ,
पर उसे वफ़ा कि समझ न थी वो प्यार को खेल समझती थी ।

Monday, March 17, 2014

प्रेम के रंग

छुप - छुपाये कान्हा जाये रंग डारि गोपियां ,
तन भिगोये मन भिगोये अंग -अंग ही रंग दिया ।

रार करती खेल करती छिनती है बंसुरिया  ,
कान्हा कहते जाने दो पर मानती ना गोपियां ।

जाने दो मुझको कि चाहे ले लो मेरी बंसुरिया ,
राधा रूठ न जाये मानो बात मेरी गोपियां ।

इस तरफ कान्हा के संग - रंग खेलती सब गोपियां ,
उस तरह जमुना किनारे रो रही थी राधिका ।

बच -बचाके दौड़ते आये रंगाये श्याम जब ,
रंग से कान्हा रंगाये आंसुओं से राधिका ।

कह रहे थे श्याम कैसे जाल में थे फंस गये ,
हिचकियां ले - ले के प्यारी रो रही थी राधिका ।

पूछती राधा बताओ मैं रंगू तुमको कहाँ ,
एक भी जगह न छोड़ी रंगने को गोपियां  ।

 मेरे तो बस एक तुम सारे जहां से पूछ लो ,
और तुम्हारी जाने हैं कितनी हजारों गोपियां ।













श्याम ने समझा कि अब तो बात बिगड़ी कई गुणा ,
मानती भी ना है बस रोती ही जाती राधिका ।

एक ही झपकी में कान्हा ने रचाया खेल वो ,
आंसू बहते कृष्ण के ही जब भी रोती  राधिका ।

देख के कान्हा के आंसू हो गई बेचैन राधा ,
भूलकर नाराजगी फिर दौड़ी आई राधिका ।

प्रेम का ये दाव उल्टा इस तरह से हो गया ,
रो रही थे कृष्ण और समझा रही थी राधिका ।

वृन्दावन का कोना - कोना भीगा था इस रंग में ,
राधा के रंग श्याम भीगे श्याम के रंग राधिका ।





Tuesday, March 4, 2014

तू मेरे लिए दुआ करता क्यूँ है

मेरे वजूद से मुझको जुदा करता क्यूँ है । 
मैं भी इंसान हूँ मुझको खुदा करता क्यूँ है । 


मुझपे भी शक रखो यहाँ कोई पाक साफ नही ,
यूँ आँख मूंद के आखिर वफ़ा करता क्यूँ है । 


मेरी भी गलतियों पे रूठो मुझसे रार करो ,
तू नजरअंदाज मेरी हर खता करता क्यूँ है । 


कहीं अफ़सोस न हो तुझको एक दिन खुदपे ,
तू रात - दिन मेरे लिए दुआ करता क्यूँ है । 

Saturday, March 1, 2014

दिल के दाग

रौशनी में भी क्यूँ चिराग लिए बैठा है ।
न जाने दिल क्यूँ इतना आग लिए बैठा है ।


भर गये जख्म पुराने पुरानी बात हुई ,
अभी तलक तू दिल के दाग लिए बैठा है ।