Theme of this blog is love and emotions attached . Songs , Gajals , Shayri written on this blog are completely my personal vies and feelings which i put into words. You can find different kind of emotion related to love and passion arranged into words which will touch your heart.
Sunday, March 30, 2014
Thursday, March 27, 2014
वो प्यार को खेल समझती थी
जिस ओर कदम हम रखते थे उस ओर मुहब्ब्त चलती थी ,
मेरे साथ मुहब्ब्त चलती थी इस बात से दुनियाँ जलती थी ।
मेरे सपनों में वो ही थी उसके सपनों में और कोई ,
वो मेरी गली से होकर के किसी और से जाकर मिलती थी ।
जी भर न कली को देख सके पतझड़ का मौसम आ पहुँचा ,
इस कदर बेसबर थी मौसम इक पल में रंग बदलती थी ।
मुझको खुशबू कि आदत थी मैं भंवरे से कुछ कम न था ,
पर एक कली वो ऐसी थी जो भंवरे रोज पकड़ती थी ।
उस कली में लाखों खूबी थी हर एक तरीका सुंदर था ,
पर उसे वफ़ा कि समझ न थी वो प्यार को खेल समझती थी ।
मेरे साथ मुहब्ब्त चलती थी इस बात से दुनियाँ जलती थी ।
मेरे सपनों में वो ही थी उसके सपनों में और कोई ,
वो मेरी गली से होकर के किसी और से जाकर मिलती थी ।
जी भर न कली को देख सके पतझड़ का मौसम आ पहुँचा ,
इस कदर बेसबर थी मौसम इक पल में रंग बदलती थी ।
मुझको खुशबू कि आदत थी मैं भंवरे से कुछ कम न था ,
पर एक कली वो ऐसी थी जो भंवरे रोज पकड़ती थी ।
उस कली में लाखों खूबी थी हर एक तरीका सुंदर था ,
पर उसे वफ़ा कि समझ न थी वो प्यार को खेल समझती थी ।
Sunday, March 23, 2014
Monday, March 17, 2014
प्रेम के रंग
छुप - छुपाये कान्हा जाये रंग डारि गोपियां ,
तन भिगोये मन भिगोये अंग -अंग ही रंग दिया ।
रार करती खेल करती छिनती है बंसुरिया ,
कान्हा कहते जाने दो पर मानती ना गोपियां ।
जाने दो मुझको कि चाहे ले लो मेरी बंसुरिया ,
राधा रूठ न जाये मानो बात मेरी गोपियां ।
इस तरफ कान्हा के संग - रंग खेलती सब गोपियां ,
उस तरह जमुना किनारे रो रही थी राधिका ।
बच -बचाके दौड़ते आये रंगाये श्याम जब ,
रंग से कान्हा रंगाये आंसुओं से राधिका ।
कह रहे थे श्याम कैसे जाल में थे फंस गये ,
हिचकियां ले - ले के प्यारी रो रही थी राधिका ।
पूछती राधा बताओ मैं रंगू तुमको कहाँ ,
एक भी जगह न छोड़ी रंगने को गोपियां ।
मेरे तो बस एक तुम सारे जहां से पूछ लो ,
और तुम्हारी जाने हैं कितनी हजारों गोपियां ।
श्याम ने समझा कि अब तो बात बिगड़ी कई गुणा ,
मानती भी ना है बस रोती ही जाती राधिका ।
एक ही झपकी में कान्हा ने रचाया खेल वो ,
आंसू बहते कृष्ण के ही जब भी रोती राधिका ।
देख के कान्हा के आंसू हो गई बेचैन राधा ,
भूलकर नाराजगी फिर दौड़ी आई राधिका ।
प्रेम का ये दाव उल्टा इस तरह से हो गया ,
रो रही थे कृष्ण और समझा रही थी राधिका ।
वृन्दावन का कोना - कोना भीगा था इस रंग में ,
राधा के रंग श्याम भीगे श्याम के रंग राधिका ।
तन भिगोये मन भिगोये अंग -अंग ही रंग दिया ।
रार करती खेल करती छिनती है बंसुरिया ,
कान्हा कहते जाने दो पर मानती ना गोपियां ।
जाने दो मुझको कि चाहे ले लो मेरी बंसुरिया ,
राधा रूठ न जाये मानो बात मेरी गोपियां ।
इस तरफ कान्हा के संग - रंग खेलती सब गोपियां ,
उस तरह जमुना किनारे रो रही थी राधिका ।
बच -बचाके दौड़ते आये रंगाये श्याम जब ,
रंग से कान्हा रंगाये आंसुओं से राधिका ।
कह रहे थे श्याम कैसे जाल में थे फंस गये ,
हिचकियां ले - ले के प्यारी रो रही थी राधिका ।
पूछती राधा बताओ मैं रंगू तुमको कहाँ ,
एक भी जगह न छोड़ी रंगने को गोपियां ।
मेरे तो बस एक तुम सारे जहां से पूछ लो ,
और तुम्हारी जाने हैं कितनी हजारों गोपियां ।
श्याम ने समझा कि अब तो बात बिगड़ी कई गुणा ,
मानती भी ना है बस रोती ही जाती राधिका ।
एक ही झपकी में कान्हा ने रचाया खेल वो ,
आंसू बहते कृष्ण के ही जब भी रोती राधिका ।
देख के कान्हा के आंसू हो गई बेचैन राधा ,
भूलकर नाराजगी फिर दौड़ी आई राधिका ।
प्रेम का ये दाव उल्टा इस तरह से हो गया ,
रो रही थे कृष्ण और समझा रही थी राधिका ।
वृन्दावन का कोना - कोना भीगा था इस रंग में ,
राधा के रंग श्याम भीगे श्याम के रंग राधिका ।
Tuesday, March 4, 2014
तू मेरे लिए दुआ करता क्यूँ है
मेरे वजूद से मुझको जुदा करता क्यूँ है ।
मैं भी इंसान हूँ मुझको खुदा करता क्यूँ है ।
मुझपे भी शक रखो यहाँ कोई पाक साफ नही ,
यूँ आँख मूंद के आखिर वफ़ा करता क्यूँ है ।
मेरी भी गलतियों पे रूठो मुझसे रार करो ,
तू नजरअंदाज मेरी हर खता करता क्यूँ है ।
कहीं अफ़सोस न हो तुझको एक दिन खुदपे ,
Saturday, March 1, 2014
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