Friday, October 28, 2016

धनतेरस की शुभकामनायें

कार्तिक मास त्रयोदशी दिन धनतेरस की रात,
लक्ष्मी करे पदार्पण घर धन लेकर के हाथ।।


टूटा हुआ मैं पत्ता

टूटा हुआ मैं पत्ता  ,  ना घर है ना  ठिकाना ।
ले चल हवा तू मुझको , जिस ओर हो ले जाना ।

तूफ़ान का मारा  हूँ , किस्मत से मैं हारा  हूँ ,
किसी डाल पे था कलतक , अब दरबदर पड़ा हूँ ,
मेरी ख्वाहिशें घरौंदा , मेरे ख़ाब आशियाना ।
टूटा हुआ मैं पत्ता  ,  ना घर है ना  ठिकाना ।

न हिन्दू न मुसलमां हूँ , इक भूली दास्ताँ हूँ ,
सारा जहाँ है मेरा , पर मैं न किसी का हूँ ,
मजहब मेरी मुहब्बत , तबियत है आशिकाना ।
टूटा हुआ मैं पत्ता  ,  ना घर है ना  ठिकाना ।

बारिश में भी जला मैं  ,  पत्थर पे भी चला मैं ,
राहों  में  दिन गुजारा  ,  दुश्वारी  में  पला  मैं ,
मुझे याद बहुत आयें , गुजरा हुआ जमाना ।
टूटा हुआ मैं पत्ता  ,  ना घर है ना  ठिकाना ।

मंजिल न जाने क्या हो , ठहराव कब कहाँ हो ,
किसको पता है कल का , है आज कल कहाँ हो ,
हम ना रहेंगे  फिर भी , आएगा दिन सुहाना ।

टूटा हुआ मैं पत्ता  ,  ना घर है ना  ठिकाना I

Friday, October 21, 2016

तू हमनशीं हमनवाज़ हमकदम बनजा

तू हमनशीं हमनवाज़ हमकदम बनजा,
न 'मैं' रहे, न 'तू' रहे आज हम बनजा।

मैं गुन गुनाउं गीत तुम हो मेरे,
मैं हार जाऊँ जीत तुम हो मेरे,
हूँ दिले-मरीज तू मरहम बनजा ,
तू हमनशीं हमनवाज़ हमकदम बनजा,

मितादूं फ़ासले जो भी आयें ,
तेरे पहलू में दिन गुजर जाये,
मैं सुर बनूंगा तू सरगम बनजा ,



राहत नही तुमको भी

राहत नही तुमको भी रात भर हम भी नही सो सके,
ना एक दूजे के संग जी सके न दुनियाँ के ही हो सके।

ना याद है ना ही भूले हैं हम, 
खुशियां भुलादीं न भूले हैं गम,
घुटते रहें रात दिन बेसबब,जीभर के ना रो सकें।

ऐ ज़िंदगी तेरे सारे सितम,
दिल पे उठाया माना करम,
हम पा के भी न तुझे पा सकें ना खोके ही खो सके।


सारे क़िताबों से फेकें गुलाब,
खुशबू नही पर गए ऐ जनाब,
आँसू ही आँसू बहें बेहिसाब ना दागे-गम धो सके।

Tuesday, October 4, 2016

दर्द अच्छे लग रहे हैं

शायरी दूर हो रही मुझसे,
शब्द सारे ही कच्चे लग रहे हैं।

समझौता हो गया है जिंदगी से ,
अब ये दर्द अच्छे लग रहे हैं।।

By
प्रीति सुमन
 

ख्वाहिशें

मंजिल दूर थी और बोझ था सर पे भारी,
इसलिए मार दीं सब ख्वाहिशें बारी-बारी ।।

By
प्रीति सुमन