Thursday, September 22, 2016

मिल जाऊँ तो खबर दूंगी

सफ़र कितना भी लम्बा हो तय कर लूँगी,
अपनी तलाश में हूँ , मिल जाऊँ तो खबर दूंगी।

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प्रीति सुमन

मैं नित अपने दर्द पिरोती

मैं दीवानी जानती रहती जो ये जग की रीत,
मन को अपने मनाये लेती ना करती मैं प्रीत ,

योदों की इक डोरी बन गई आंसू बन गए फूल,
मैं नित अपने दर्द पिरोती तुम समझे हो गीत ।।

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प्रीति सुमन


याद बहुत आता है

दाग बरसों तलक घावो का कहाँ जाता है,
हो जिसकोे भूलना वही याद बहुत आता है ।।



Tuesday, September 20, 2016

मुहब्बत है

इक एहसास मुहब्बत है और कुछ भी नही ,
अनकही प्यास मुहब्बत है और कुछ भी नही,

एक जर्रा भी वही है उसी के जैसा है,
दिली- कयास मुहब्बत है और कुछ भी नही ।

हम भी भूल सकते हैं

तुम्हे हम याद नही ,हम भी भूल सकते हैं,

झूठ ही कहना है,लो हम भी बोल सकते हैं।

Monday, September 19, 2016

जाना कहाँ मुझको

चले तो जा रहे जाना मगर कहाँ मुझको,
रस्ता मालूम है मंजिल नही पता मुझको,

तुम्हे खबर हो तो मुझको भी ये बता देना,
मौत से पहले भी रुकना है किस जगह मुझको।।

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प्रीति सुमन

नफ़रतें दुनियां की

रौनकें राग की मलंग हो गई होती,
चाहतें और भी बुलंद हो गई होती,

कोशिशें हमने बदलने की जरा की होती ,
नफ़रतें दुनियां की ये बन्द हो गई होती ।।

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प्रीति सुमन

बुने थे जाल

बुने थे जाल ख़ुद ही ख़ुद ही उलझ बैठे थे,
था कुछ भी नही क्या-क्या समझ बैठे थे।।  




मैं नित अपने दर्द पिरोती

मैं दीवानी जानती रहती जो ये जग की रीत,
मन को अपने मनाये लेती ना करती मैं प्रीत ,

योदों की इक डोरी बन गई आंसू बन गए फूल,
मैं नित अपने दर्द पिरोती तुम समझे हो गीत ।।

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प्रीति सुमन

दोस्त मेरी कत्ल में शामिल निकले

दुश्मन तो बहुत थे,सब नाकाबिल निकले ,
मेरे ही दोस्त मेरी कत्ल में शामिल निकले ।।

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प्रीति सुमन

मर जाऊंगी शायद मैं

छीन रहें वो शब्द मेरे, मेरे जज्बात,
मर जाऊंगी शायद मैं फिर इसके बाद।।



जब से तुमने

जब से तुमने मुझको पढ़ना छोड़ दिया,
स्याही ने तो दर्द ही गढ़ना छोड़ दिया।।

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प्रीति सुमन

खुद का गला घोंटा था

बहुत जमाने बाद खुद से गुफ्तगू करके,
हुआ मालूम मैंने खुद का गला घोंटा था ।।

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प्रीति सुमन


मैं

बहुत भटका अँधेरे में,मुझे मैं ने ही भटकाया,
और जब लौट कर आया,मैं
मेरे साथ न आया।

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प्रीति सुमन

मुझे बरबाद होना था


बचाकर इसलिए महफूज था रखा गया मुझको, 
इकदिन इश्क के हाथों मुझे बरबाद करना था।



Saturday, September 17, 2016

मेरे ऊपर नही मेरी नजर

मुझे हर बात पर टोका गया मगर फिर भी,
हजारों ऐब मुझमें कर गए हैं घर फिर भी,

कितनी गुस्ताखियाँ देखी गई मुझमें लेकिन,
मेरे ऊपर नही रहती मेरी नजर फिर भी।

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प्रीति सुमन

मुहब्बत से मिलो

माना तुमको नही है मुझसे मुहब्बत लेकिन,
मैं भी इंसान हूँ मुझसे भी मुहब्बत से मिलो।

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प्रीति सुमन

हर शख्स यहां का शायर जैसा दीखता है

जीवन के कोरे पन्नों पर अपनी बातें लिखता है,
मुझको तो हर शख्स यहां का शायर जैसा दीखता है।।

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Preeti Suman

मुझको भटकना था लिखा

तू मुझमें ही रहा फिर भी न तू मुझको दिखा ,
तुझे मिलना न था या मुझको भटकना था लिखा।

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प्रीति सुमन

शायर हूँ मैं

मैंने कई बार चुरायें हैं दर्द लोगों के,
मेरा परिचय है,गुनहगार हूँ शायर हूँ मैं।

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प्रीति सुमन