Monday, October 13, 2014

my poem published in today's news paper....वक्त बेवफा भी है

वक्त के बदलाव का  ,ये सिलसिला भी है ,
जिससे हुआ है प्यार ,उससे गिला भी है ।

मंजिल पे खड़ा  हैं  ,  जमात हैं हजारों की ,
वही रास्ते में था तो  , तन्हां चला भी है ।

चिंगारी ने जब चाहा है ,जला डाला आशियाँ ,
पर और जले उससे पहले , खुद जला भी है ।

हैं  निम - करेले में  , कडवाहटें  जितनी ,
नजरें बदल के देखलो ,  उतना भला भी है ।

है राज अँधेरे औ ,   उजाले का बस इतना ,
जिसका उदय हुआ है , इकदिन ढला भी है ।

इंसान ने इंसान को  ,धोखा दिया तो क्या ,
इंसान ने कई बार तो ,खुद को छला भी है ।

इतना न कर गुमान , वक्त किसका हुआ है  ,
है ये  जितना वफादार उतना बेवफा भी है । |


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