Wednesday, June 11, 2014

रात रानी

आरजू विनती रही सारी बेमानी किसलिए ।
रूठ जाती है तू मुझसे रात रानी किसलिए ।

किस खता की दे रही है रोज तू मुझको सजा ,
तेरे - मेरे बीच में ये खींचा - तानी किसलिए ।

जीत तेरी हो गई ले हार मैंने  मान ली ,
मान भी जा अब तेरी ये आनाकानी  किसलिए।

 ये बता मुझसे जियादा कौन तुझपे मर मिटा ,
बन रही है और की जाके दीवानी किसलिए ।

नींद हैं न खाब हैं बस रात काली तू नही ,
भूल गई आखिर मेरी चाहत पुरानी किसलिए ।



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