Thursday, June 13, 2013

खिलौना मेरा टूट गया

बहुत दूर साथ चला था वो मेरा साथी मगर ,
कहीं इक मोड़ पे वो साथी मेरा छुट गया ।

बहुत प्यारा था मिटटी का खिलौना मुझको ,
मेरे ही हाथ से न जाने कैसे टूट गया ।

न मुझे चाँद की ख्वाहिश थी न सितारों की ,
प्यारा वो खाब था जो आँख खुली टूट गया ।

वो इतनी दूर है आवाज मेरी सुनता नही ,
जाने क्या बात हुई ऐसी की वो रूठ गया ।

आँखों - आँखों में मुहब्बत जो हुआ करती थी,
उन्ही आँखों में मेरा सारा जहाँ छुट गया । 

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